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उत्तराखंड: जिस जंगल से शुरू हुआ चिपको आंदोलन, उसको लगी माफिया की नजर, पेड़ों पर चली आरियां

चमोली: चिपाको आंदोलन दुनिया को पर्यावरण संरक्षण की राह दिखाने वाला आंदोलन था। भारत ही नहीं पूरी दुनिया को इस आंदोलन ने दिशा दी, लेकिन आज गौरा देवी और उनकी साथी महिलाओं के उस आंदोलन से बचाए जंगल को माफिया की नजर लग गई है। चिपको आंदोल के 49 साल पूरे हो चुके हैं। जिस जंगल से चिपको आंदोलन शुरू हुआ था। उस जंगल को माफिया की नजर लग गई है।

जंगल में आरियां उन्हीं कांचुला के पेड़ों पर चली हैं, जिनको बचाने के लिए महिलाएं पेड़ों से चिपक गई थी। जानकारी मिलने के बाद वन विभाग के अधिकारी और रैणी गांव के लोग मौके पर पहुंच गए हैं। रैणी गांव के जंगल के जिस पगराणी क्षेत्र से चिपको आंदोलन शुरू हुआ था। वहां कांचुला के कई पेड़ों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है।

बताया जा रहा है कि 28 मार्च को गांव का ही कोई व्यक्ति जंगल गया था। पेड़ों को नुकसान पहुंचाने की जानकारी उन्होंने ने ही गांव वालों और वन विभाग के अधिकारियों को दी। सूचना पर रैणी गांव की महिला मंगल दल, युवक मंगल दल सहित अन्य ग्रामीण और वन विभाग की टीम मौके के लिए रवाना हुई। टीम के लौटने पर वास्तविक स्थिति का पता चल पाएगा।

बताया जा रहा है कि यहां करीब 15 से 20 पेड़ों से टुकड़े निकाले गए हैं, जिससे यह पेड़ कमजोर हो गए हैं। कई पेड़ों से तो दो से तीन टुकड़े निकालकर उनको खोखला कर दिया गया है, जिससे इनके सूखने की भी आशंका है। पेड़ों से टुकड़े निकालकर इनकी तस्करी की जाती है। इन टुकड़ों से लकड़ी की फैंसी कटोरियां और गिलास बनाए जाते हैं, जो काफी कीमती होते हैं।

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