जोशीमठ (चमोली)। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने सोमवार को जोशीमठ के भूधंसाव से प्रभावितो से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि मानवीय भूलों से सीमा पर बसे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, पर्यटक नगर जोशीमठ का अस्तित्व खत्म हो रहा है। अभी भी सरकार को सामरिक महत्व के इस नगर की बर्वादी के वास्तविक कारणों को खोज कर इस शहर के जितने हिस्से का स्थायीकरण कर इसे बचाया जा सकता है उसके लिए प्रयास करने चाहिए।
नेता प्रतिपक्ष ने रविग्राम, रविग्राम, जयप्रकाश मारवाड़ी आदि वार्डो का भ्रमण कर जमीनी स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने कहा कि जोशीमठ के लोग 14 महीनों से जोशीमठ पर आ रहे संकट से बचाने के लिए विभिन्न माध्यमों से सरकार के सामने गुहार लगा रहे थे। उन्होंने कहा कि डोडिला मुहल्ले के मदन लाल का मकान 14 महीने पहले धंस गया था। इनके अलावा भी दर्जनों घर एक साल के भीतर जमीन में धंसते रहे। उन्होंने कहा कि अगर सरकार और प्रशासन समय रहते जनता के दर्द को सुन लेते तो स्थिति इतनी विकराल नहीं होती। उन्होंने कहा कि जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति सरकार से एनटीपीसी और हेलंग मारवाड़ी बाईपास के निर्माण पर पूर्ण रोक लगाने की मांग कर रही थी अगर समय रहते इन न्यायोचित मांगों पर विचार हो जाता तो संभव था कि नुकसान इतना नहीं होता। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने इन कार्यों पर रोक लगाने का निर्णय 550 मकानों के नुकसान होने के बाद लिया।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि, 2010 में ऊर्जा मंत्री और जिला प्रशासन की मध्यस्थता में हुए एक समझौते के अनुसार एनटीपीसी को जोशीमठ के मकानों का बीमा भी करना था ताकि यदि भविष्य में कभी मकानों को नुकसान हो तो उसकी भरपाई की जा सके। उन्होंने कहा कि इस समझौते को लागू करने से पहले एक हाई पावर कमेटी को परियोजना की समीक्षा भी करनी थी, परंतु सरकार ने उस कमेटी का गठन किया ही नहीं। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते सरकार एनटीपीसी के द्वारा मकानों के बीमा करा देती तो शायद आज पीड़ितों के सम्मानजनक विस्थापन के लिए किसी ओर तरीके को खोजना नही पड़ता। उन्होंने कहा कि अब आपदा की इस घड़ी में हम सबको मिलकर प्रयास करने चाहिए। जोशीमठ में जो बचाया जा सकता है उसे बचाने के प्रयास होने चाहिए। उन्होंने कहा कि इस समय पीड़ितों के समयबद्ध और सम्मानजनक विस्थापन तथा पुनर्वास की अबिलम्ब जरूरत है। उन्होंने कहा कि केवल प्रशासनिक मशीनरी के भरोसे इतनी बड़ी आपदा से निपटना मुश्किल है इसलिए सरकार को न केवल उच्च स्तर पर एक अधिकार प्राप्त समिति बल्कि स्थानीय स्तर पर भी समन्वय समितियों का गठन करना चाहिए। उच्च और स्थानीय स्तर पर गठित होने वाली इन समितियों में स्थानीय जन प्रतिनिधियों और इस शहर को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी सम्मिलित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि, विभिन्न स्तर पर स्थानीय लोगों को निर्णयों लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाकर ही आपदा की इस घड़ी में मानवीय संवेदनशीलता बनी रह सकती है।